Tuesday, November 18, 2008

Yet another

The response to my Hindi poems has been so poor that I have been contemplating blog suicide. But before I do that, here is another:

तुम्हारे उजले तलवों से दिन निकल आया है
मेरे स्याह माथे पर रात अभी लहराई है
मेरे सीने की नदी में पाँव डालकर देखो
इसकी कितनी गहराई है

I invite readers to share their own poems - in Hindi and English, which has
mention of sole(s), the bottom of the foot.

25 comments:

azdak said...

i thought of writing something, but nothing comes to mind. it happens.

Kakshi said...

My lame attempt..

कल कल करते झरने में
पानी के सर्द थपेडों में
पायल का ताज पहन
मैं थिरकाती तुम्हारा मन |

कभी मेहँदी से तुम सजाती मुझे
कभी लाल रंग लगाती मुझे
कभी शरारत करती तुम
मेरी पायल झंकार कर तुम |

...

Rahul Pandita said...

Hmmm. But, Kakshi, it has no mention of sole.

Anonymous said...

उजले तलवों से दिन निकलना.... खूब... अच्छा बिम्ब है... और मैंने पहली बार देखा है...

Kakshi said...

hmm.. you are right.. will give another try :D

Kakshi said...

Another lousy attempt...
अपनी आंखों से काजल ले
माँ एक काला टीका मेरे तलवो पर लगाये |
मेरे भइया खेलते खेलते
मुझे तलवो पर गुदगुदाए |
पापा मेरा हाथ पकड़
मेरे तलवो को अपने पैरों पर रख
मुझे धीरे धीरे चलना सिखाएं |

Rakesh Kumar Singh said...

मुझे तो बहुत अच्‍छी लगी. लिखते रहो बंधु.

Rahul Pandita said...

काक्षी, ये हुई न बात.

राकेश, बहुत दिन हुए, मुलाकात नही हुई. एक चाय का प्याला तो पिला दो, गुरु.

Rahul Pandita said...
This comment has been removed by the author.
Kakshi said...

Wow.. you liked it?!Thanks :D

पटिये said...

हाथों की लकीरों में
सुकून की पनाह नहीं ,
मंज़िल के निशाँ तलाशती
दौड़ती रहती हूँ दिन रात यूँ ही
सोचती हूँ कि माँ क्यों कहती थी...
तेरे तलवों में राज रेखा है.....

Rahul Pandita said...

Brilliant, Shifalee. Saw your other verses as well. You write well. Cheers,r

Smriti said...

Very graceful, lyrical and feminine:)

पटिये said...

शुक्रिया.,भेजती हूँ....,शिफाली।

akanksha said...

बर्फीली सरदियों में
तुम्हारे तलवों के बीच
रख कर गरमाते थे मेरे पैर
गरमियों की झुलसन में
सान कर ठंडी मेंहदी तुम लगा
देती थीं मेरे तलवों पर।
सर्दी-गर्मी के बीच
अपने आराम में
मैं भूल ही गया
बारिश में कसकती होंगी
तलवों में पड़ी तुम्हारी बेवाइयां...

Rahul Pandita said...

Bohot umda, Akanksha. It runs deep. Thank you for sharing this with us.

Jay said...

Hi,
Good One !
Keep writing.
/Jay

Phoenix said...

hello sir wanted to discuss something with you how can I contact you.

Rahul Pandita said...

Phoenix, mail me at
rahulpandita1@gmail.com

फ्रेंकलिन निगम said...

gud kavita...pad kar achchha laga....

Rakesh Kumar Singh said...

का भैया, कैसे हो?

face the truth said...

'simile' aur 'metaphor' ka itna bedhab prayog pehle kabhi nahin dekha. Halanaki, For Maya post me prakashit kuch kavitayen achchi hain.

TULSI IS SANSAR ME said...

hindi me aur kavita me aapka haath bahut saaf lagta hai. lagta hai hindi belt ke aadmi ho guru.

Pratyaksha said...

http://pratyaksha.blogspot.com/2008/07/blog-post_13.html

कविता लम्बी है , इसलिये लिंक ...

the man who fight with both hands said...

पल पल बिखरते, टूटते से रिश्ते ;
रेत पर क़दमों के निशान से ,
लहरों से बनते बिगड़ते ये रिश्ते;
इमली के स्वाद से,
खट्टे मीठे ये रिश्ते;
समय के ब्लैकबोर्ड पर,
भावनाओं की चौक से,
लिखते ,मिटते ये रिश्ते;
हवाओं के थपेडो में,
दीपक से जलते, बुझते ये रिश्ते;
समय के अंतहीन लहरों पर,
डूबते, उतरते, तैरते ये रिश्ते;
दिल के दलदली सतह पर,
ओछे से, बेकार से, बदबूदार से रिश्ते;

रेत के तपते मरुस्थल में,
अनबुझी प्यास से रिश्ते;
चंद शब्दों के मोहताज से रिश्ते;
छोटी बातों की बड़ी सजा,
बड़ी बड़ी बातों को हल्के में उड़ाते ये रिश्ते;
बिस्तर पर सोये दो अनजानो के बीच,
पसरी खामोशी सी, फैली दूरियों से रिश्ते;
बेदर्द, बेजान, भावशुन्य पत्थडो पर
सर पटकते से ये रिश्ते;
तुम्हें ढूंढ़ते अंतहीन, अनंत सफर से रिश्ते,
पल पल बिखरते , टूटते से रिश्ते।