Tuesday, November 18, 2008

Yet another

The response to my Hindi poems has been so poor that I have been contemplating blog suicide. But before I do that, here is another:

तुम्हारे उजले तलवों से दिन निकल आया है
मेरे स्याह माथे पर रात अभी लहराई है
मेरे सीने की नदी में पाँव डालकर देखो
इसकी कितनी गहराई है

I invite readers to share their own poems - in Hindi and English, which has
mention of sole(s), the bottom of the foot.

Tuesday, November 11, 2008

For Maya

First, my apologies. It has taken me a while to post some of my poems even after receiving many responses. Actually I had been travelling again, with no access to the Internet. Anyway, here they are, four of them. I hope you like them. Do let me know.

Also, one clarification: though I am a fan of Gulzar, the name Maya is not inspired by the usage of the name in some of his films. Maya is my muse, an imaginary seductress who visited Vincent Van Gogh in his delirium (Please do read Irving Stone's magnificent biography of Van Gogh, Lust for Life, and you will know what I mean).

Thank you.

अकेलेपन का शोर अलग होता है
वो कानों में नही बजता
वो बजता है मन की मुंडेरों पर
संगीतबद्ध होने से बचता

उसे सुनकर बच्चे पीछे नही लगते
न ही गेहूँ बीनती औरतें
सर उठाकर देखती है
काले तवे सा बस वो चपटा होता है
जिसपर आँखें समय सेंकती है
और...
स्मृति पथराये बिस्तर पर
करवट-करवट रेंगती है

सिन्धु सी आवाज़ करता वो
तो मैं भी सिंह सा गरजता
पर...
अकेलेपन का शोर अलग होता है
वो कानों में नही बजता
***
मेरी हथेलियों पर
लकीरें नही
तुम्हारे आने-जाने के
निशान हैं
***
जब शाम घिर आती है
तो क्या
मेरे बारे में सोचती हो?
उस सरफिरे बाज़ार में
आँखें घुमाकर
क्या मुझे खोजती हो?

जब मैं नही दिखता तो
क्या कंधे भारी हो जाते हैं?
या काफ़ी के प्याले में
घड़ियाल नज़र आते हैं?
***
कानपुर से लौट आई हो
सूटकेस में
खांसी भर लायी हो
"क्या कर रही हो?"
"खों खों... अनपैक"

जी करता है
तुम्हारे गाल पर
विक्स में चुपडी हथेली से
एक थप्पड़ रसीद दूँ.

(CROSS POSTED HERE)