First, my apologies. It has taken me a while to post some of my poems even after receiving many responses. Actually I had been travelling again, with no access to the Internet. Anyway, here they are, four of them. I hope you like them. Do let me know.
Also, one clarification: though I am a fan of Gulzar, the name Maya is not inspired by the usage of the name in some of his films. Maya is my muse, an imaginary seductress who visited Vincent Van Gogh in his delirium (Please do read Irving Stone's magnificent biography of Van Gogh, Lust for Life, and you will know what I mean).
Thank you.
अकेलेपन का शोर अलग होता है
वो कानों में नही बजता
वो बजता है मन की मुंडेरों पर
संगीतबद्ध होने से बचता
उसे सुनकर बच्चे पीछे नही लगते
न ही गेहूँ बीनती औरतें
सर उठाकर देखती है
काले तवे सा बस वो चपटा होता है
जिसपर आँखें समय सेंकती है
और...
स्मृति पथराये बिस्तर पर
करवट-करवट रेंगती है
सिन्धु सी आवाज़ करता वो
तो मैं भी सिंह सा गरजता
पर...
अकेलेपन का शोर अलग होता है
वो कानों में नही बजता
***
मेरी हथेलियों पर
लकीरें नही
तुम्हारे आने-जाने के
निशान हैं
***
जब शाम घिर आती है
तो क्या
मेरे बारे में सोचती हो?
उस सरफिरे बाज़ार में
आँखें घुमाकर
क्या मुझे खोजती हो?
जब मैं नही दिखता तो
क्या कंधे भारी हो जाते हैं?
या काफ़ी के प्याले में
घड़ियाल नज़र आते हैं?
***
कानपुर से लौट आई हो
सूटकेस में
खांसी भर लायी हो
"क्या कर रही हो?"
"खों खों... अनपैक"
जी करता है
तुम्हारे गाल पर
विक्स में चुपडी हथेली से
एक थप्पड़ रसीद दूँ.
(CROSS POSTED HERE)
15 comments:
Thank you for sharing!
At the risk of sounding redundant - I love your expression!
Rahul ji :: abhi aap e blog par aapki kuch rachnaein padhii. kya aap mere baanchne ke liye apna vah kaam bhej sakenge jo aap ne CSDS ke liye kiya hain ?
mera e-mail pata hain : todaiya@gmail.com
piyush daiya
Thanks, Jasleen.
Piyush, Have mailed you the link.
Loved the last one. Unique expression.
Your sense of romance is so different..
जी करता है
तुम्हारे गाल पर
विक्स में चुपडी हथेली से
एक थप्पड़ रसीद दूँ.
फिर कुछ नए तरह के बिम्ब... तवे सा चपटा अकेलापन... आंखों का समय सेंकना... ये एक अलग सी छाप है आपकी कविता में... और यही है विक्स की चुपड़ी हथेली... जो कविता के गाल पर लगकर कुछ और मजेदार हो जा रही है...
Pashupati, Thank you. It's been long. Where have you been?
hi rahul..this one about voilence of silence is full of interesting and varied verbal expressions...liked it
कविता में खाँसी,और फिर विक्स का चले आना...नई कविता है आधुनिक कविता...अकेलेपन के शोर को महसूस किया...खूब लिखते हैं...
शिफाली
I really liked your first two poems. Especially the 4 liner is very beautiful.
स्मृति पथराये बिस्तर पर
करवट-करवट रेंगती है
Nice!
Loudness of solitude?
Govind
दोस्त,
'मेरी हथेलियों पर...' अद्भुत चौपाई है. फाख्ता के परों सी खफीफ, खाली चर्च की उदासी जैसी, और गुम चोट की तरह पोशीदा.
आपने बहुत अच्छा लिखा है.
तुम्हारे गाल पे विक्स में चुपडी थप्पड रसीद दूं.
ख्याल क्या क्या बुन के मौसम काटता है.
आपकी लिखावट में दिखता है.
the biography sits on my windowsill waiting to be read. i fear solitude. i want to begin reading it. but by placing my head on a lap with a hand caressing my face. then i will be in peace to read.
P
पता नहीं कब बुकमार्क किया था आपका ब्लोग और बुकमार्क करके भूल गया। आज भटकते हुए मिला तो अफसोस भी हुआ और खुशी भी हुई। अफसोस इस बात का मैं कितना भूलकक्ड़ हो गया हूँ और खुशी इस बात से कि कई शानदार,ज्ञानवर्धक सार्थक,चीजें और कई रचनाएं पढने को मिली। और ये वाली रचना वाकई पसंद आई।
अकेलेपन का शोर अलग होता है ....... वो कानों में नही बजता।
बहुत ही बेहतरीन।
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